देवी का रूप - डा० नीलिमा मिश्रा

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आज आश्विन शुक्ल प्रतिपदा,लेकर माँ का नाम।

करो शैलपुत्री का पूजन, हर मंदिर हर धाम।।

दीप जला कर सुबह-शाम सब, भक्त चढ़ाते फूल।

माता रानी पथ से सबके, सदा हटातीं शूल।।

ब्रह्मचारिणी द्वितीय रूप है, करती मन को शांत।

हर कुमारिका में माँ बसतीं, गाँव-नगर हर प्रांत।।

तृतीय रूप में चंद्रघंटिका, दिखतीं चंद्र समान।

निर्मल- निश्छल मन कर देतीं, माँ की शक्ति महान।।

चौथा रूप मात कूष्मांडा, देती हैं वरदान।

कार्तिकेय की माता बनके, नित्य बढ़ातीं मान।।

अद्भुत हैं स्कंदमात्रिका, सदा लुटाती नेह।

जो माता का पूजन करता, भरें धान-धन गेह।।

छठे रूप में माँ कात्यायनी, दुर्गा रूप अनूप।

हर नारी में शक्ति अलौकिक, बतलाता यह रूप।।

वैरी-दुष्टों को संहारे, बनकर काली काल।

जय जय जय माँ काली बोलें, सारे भक्त निहाल।।

अष्टम रूप महागौरी माँ, निर्मल शांत अपार।

हर गृहिणी में दिखता हमको, चला रहीं संसार।।

नवम रूप है सिद्धिदात्री, सिद्ध करे सब काज।

नर-नारी बच्चे-बूढ़ों से, बनता सकल समाज।।

कन्याओं में छिपा हुआ है, माँ का असली रूप।

देवी का पूजन जो करता, छाँव बने सब धूप।।

नीलम कहती नौ रूपों में, करिए माँ का ध्यान।

देवी के असली रूपों का, तुम्हें मिलेगा ज्ञान ।।

- डा० नीलिमा मिश्रा (शिक्षिका/कवयित्री) , प्रयागराज, उत्तर प्रदेश