तेरा मिलना - जितेंद्र कुमार

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हाँ तेरा मिलना मुझको,आज भी याद हैl

हाँ तेरा मिलना मुझेको,आज भी याद हैl

निलांबर ओढे आकाश-ह्रदय में,

प्रेम - सूर्य   उदित   हुआ    था l

भाव  - पक्षी      उड़ -  उड़कर,

आशक्ति की बात मुझे बताया l

साकी  -  सी     बोली     तेरी,

मुझको   अब   भी    याद   है l

हाँ तेरा मिलना मुझको, आज भी याद हैl

एक दिल ही था जो मेरा सुनता,

उस पर भी  हस्ताक्षर तूने करके

दिल-सम्पत्ति कर ली अपने नाम

मन - वकील  ने  हँसकर   पूछा,

क्या   तुम्हे  भी यह  था स्वीकार l

मैंने   मन - वकील    से    बोला,

पूर्णिमा  की  चाँद -  सी   है   वो l

उसपे  तो   मेरा  जीवन   कुर्बान l

उषा  काल -  सा   मुखड़ा   तेरा,

मुझको    अब    भी    याद     है l

 हाँ तेरा मिलना मुझे आज भी याद है,

नयनों   में   तस्बीर तुम्हारी,

हुई साँस अब साँस तुम्हारी l

तेरी रुचिर,मोहक,मुस्कान के आगे,

नदियाँ,   झरने,  और    सरोवर,

सब    पड़    जाते    है    फीके l

देख    मुझे      शर्माना     तेरा,

मुझको    आज    भी    याद   है l

हाँ तेरा मिलना मुझको,आज भी याद हैl

चकवा-चकई,हँस-हांसिनी,

प्रेम    क्रीड़ा    थे    करते l

फूल-कलिया एक दूसरे को देख,

मंद  , मंद     थे      मुस्काते,

था आकाश मेघ से आच्छान्दित,

मोर -  मोरनी     थे       नाचते l

वह   जगह    ह्रदय   - तल  में,

आज     भी        मौजूद     है l

हाँ तेरा मिलना मुझे, आज भी याद हैl

हाँ तेरा मिलना मुझे आज भी याद हैl

- जितेंद्र कुमार, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश