बोलती गौरैया (गौरैया दिवस-20 मार्च) - हरी राम यादव

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छीनकर हमारा आसरा,

   तुमने बना लिया मकान,

मैं कहां जाऊं मुझे बता दो,

   हे धरती के, तुम इंसान ।

रहती थी तुम्हारे घर में,

   मैं बनाकर एक घोंसला।

रह लेती खपरैल छप्पर,

   करती न कोई ढकोसला।

  

तोड़ कच्चे घर को तुमने,

    पक्का घर बना लिया।

ध्यान रखा न हमारा,

    तुमने हमको बेघर किया।

काट डाला पेड़ पल्लव,

    छांट डाली हरी डालियां।

कर डाली जहरीली तुमने,

   धान गेहूं ज्वार की बालियां।

झाड़ियां भी न बच रहीं,

   न बच रहे नदी के तीर।

कहां मैं रहूं तुम बता दो,

    कहां पिऊं हरी मैं नीर।

ताल तलैया पाटकर,

  ‌माल तुमने बना लिया।

बन गये धनाढ्य तुम,

   बोलो मुझको क्या दिया।

दो बूंद पानी पी लेती थी,

   सामने वाले इनार पर ।

कूड़े से उसे भी भर दिया,

    शर्म आती दीदार कर।

क्या कहूं, कहां तक कहूं,

    मानव तुम्हारी नादानियां।

तुमने तो खड़ी कर दीं,

   ‌‌ हमारे लिए परेशानियां।

मुझसे बात करने को,

    तुम्हारे पास न समय रहा।

तुम भूल गए मित्र को भी,

     जिसने साथ दुःख सहा।

दिवस मनाने पड़ रहे,

    तुम्हें हमारे नाम पर।

ध्यान धरकर सोच लो,

    फिर लग जाना काम पर।।

- हरी राम यादव, अयो ध्या, उत्तर प्रदेश