प्रीति की बात करो - अनुराधा पांडेय

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कुछ न सम्बल हैं हमारे,

मात्र इतना ही कहेंगे।

पूर्व में भी थे तुम्हारे,

और आगे भी रहेंगे।

तुम हमारे नाम पर ,

चाहे सभी अभियोग धर दो ।

व्यंग वाणों से हमारा ,

वक्ष चाहे पूर्ण भर दो ।

किन्तु इस पावन प्रणय में..

हर व्यथा हँसकर सहेंगे ।

पूर्व में भी थे तुम्हारे,

और आगे भी रहेंगे ।

क्या डरायेगा हमें अब

प्रेम का यह अग्नि सागर ?

भर लिया हमने इसी से,

जब तृषामय रिक्त गागर ?

मर गई तृष्णा अभागी...

प्यास से अब क्या दहेंगे ?

पूर्व में भी थे तुम्हारे,

और आगे भी रहेंगे ।

हाँ! महज इतना कहेंगे,

हर विपद में याद करना।

हम प्रतीक्षारत रहेंगे,

जब रुचे संवाद करना।

बस बताना इंगितो में....

हम उसी पथ को गहेंगे।

पूर्व में भी थे तुम्हारे,

और आगे भी रहेंगे।

 - अनुराधा पांडेय, द्वारिका , दिल्ली