तंत्र सुरक्षा - भूपेन्द्र राघव

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आग लगाना, पत्थरबाजी अगर शांति की परिभाषा है

तंत्र सुरक्षा  को भी कह दो, शांतिपूर्ण व्यवहार करें

आखिर कब तक  स्वीकारोगे

सर पर  शांति  शिलाओं  को 

कब तक  सीने पर पत्थर धर

उन्मादी    आकाओं    को

ये  लातों  के  भूत  बात से

माने    हैं,   जो  मानेंगे

सठे  साठ्यम  समाचरेत  की

भाषा   ही    यह   जानेंगे

इनक  ही भाषा में बातें, अब इनसे सरकार करें

तंत्र सुरक्षा ..... ......... ....... ....... ...... ........ ........

कानूनों  का  पता  नहीं   है

किस  विरोध  में  निकले  हैं

बूढ़े  बच्चे  युवा  सड़क  पर

क्यों   क्रोध   में  निकले हैं

राजनीति  की रोटी  सिंकती

हाँ,   कुछ   के  बहकाने से

किन्तु  बुझेगी आग यकीनन

थोड़ी   अक्ल   लड़ाने  से

समझें  बूझें, समझ न आये, शांतिपूर्ण दरकार करें

तंत्र सुरक्षा ..... ......... ....... ....... ...... ........ ........

भेड़चाल   में   फँसकर   ऐसे

अपना   देश    जलाने  से

अरे! नागरिक, क्यों पथभ्रष्ठी 

हिंसा-पथ    अपनाने  से

लोकतंत्र   की  मर्यादा  ही

तार  तार  हो   जाती  है

विश्वपटल पर एक देश की

स्वयं  हार  हो  जाती है

दूरदृष्टि ले क्रुद्ध नागरिक, कुछ तो तनिक विचार करें

तंत्र सुरक्षा ..... ......... ....... ....... ...... ........ ........

सीधी उँगली में अक्सर जब

घी  =न  ज़रा  सा आता है  

तब उँगली  को कभी-कभी

टेड़ा   करना  पड़  जाता है

युगों युगों से  प्रामाणिक है

भय बिन  प्रीति नहीं होती

शर-संधान   जरूरी   तब 

अनुनय से जीत  नहीं होती

अफवाहों को समझें, मिलकर कारण का निस्तार करें

तंत्र सुरक्षा ..... ......... ....... ....... ...... ........ ........

- भूपेन्द्र राघव, खुर्जा , उत्तर प्रदेश