सुर्ख गुलाब - सविता सिंह

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मिला  मुझको  कहीं से, सना हुआ प्रेम से जो खत,

न  जाने  दिल में धीमे से  किसने  दे  दिया  दस्तक,

बचाकर सबसे खत  को हम जरा उसे  देखना चाहें,  

लिखा ना नाम पता कुछ भी उसे ही ढूंढते अब तक|

बरस पहले जो पाया था, तुमसे सुर्ख  लाल  गुलाब,

जरा देखा तुम्हें तो सुखी  पंखुड़ी  सुर्ख सी  हो  गई,

बचाकर सबकी नजरों से  निकाला सुर्ख जो गुलाब,

 हवाओं में  वही खुशबू  पुरानी फिर से  तैयार  गई|

- सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर