चुप थे - सुनील गुप्ता 

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चुप थे

तो चल रही थी....,

ये ज़िन्दगी बड़ी लाजवाब  !

खामोशियाँ बोलने लगी

जबसे........,

तो, बवाल मच गया जनाब  !!1!!

कहते थे कि मौन में

रहना ही सबसे......,

अच्छा होता  !

पर, मन कहां

ये रहता शांत......,

वो तो दौड़ते ही रहता !!2!!

जानें क्यों

बैठे हैं यहां......,

बदहवास में हम चुपचाप  !

कह दो उनसे

जाकर कि......,

बोलेंगे तो होंगे बदनाम ही आप !!3!!

वक़्त बदलने का

करें क्यों........,

हम इंतजार यहां  !

शामे ग़ज़ल

सज रहीं हैं......,

चले बिखेरते मदहोशी यहां !!4!!

है रात का

घनघोर सन्नाटा.....,

और बह रही ठंडी बयार  !

चांदनी की

मधुर शीतलता......,

बना रही हमें बेक़रार !!5!!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान