बुझे दीये को फिर जलाएं - सुनील गुप्ता

(1)"आओ", आओ जलाएं बुझे दीये को
करें रोशन जहां को सारे !
उत्साह उमंग भरकर सभी में ......,
चलें हर्षाए जीवन में सारे !!
(2)"बुझे", बुझे हैं उन्हें देकर फिर जीवन
करें आशाओं का नव संचरण !
दिखाकर उन्हें जीवन दिशाएं........,
करते चलें दूर अज्ञान आवरण !!
(3)"दीये", दीये की बाती को देकर नव प्राण
खिलाएं जीवन में चहुँओर मुस्कुराहट !
तोड़ के तमसावृत की दीवारें......,
बिखेर दें ज्ञान की ख़ुशबू और मकरंद !!
(4)"को", कोई तो शक्ति जलाए रहे दिए को
तन्हा रात में देती है हिम्मत !
बुझ आए अगर टिमटिमाता दीया..,
तो, भर दें उसमें फिर से क़ुव्वत !!
(5)"फिर", फिर से उडने की जिसकी हो चाह
उसके मन में भरें उत्साह उमंग !
कभी ना डिगाएं उसकी इस चाह को... ,
और करें बुलंद हौसला सदैव हम !!
(6)"से", सेतु बन दिए ने पार लगा दी
जीवन कश्ती को अंधेरों से !
ख़ुशनुमा बना ज़िन्दगी सारी...,
आशाएं बंधा दी जीवन में फिर से !!
(7)"जलाएं", जलाएं मन दीये की लौ सदा
बुझने से पहले भर लें उमंग !
जीवन में करने काम बहुतेरे.....,
भरते चलें जीवन में तरंग !!
(8)" आओ बुझे दीये को फिर से जलाएं ",
कभी बुझने ना दें इसको यहां हम !
मन के बहते अज़स्त्र सागर में उतर.......,
आशाएं संग रहें खेते नाव हम !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान