जंग स्त्री की - सुनील गुप्ता

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जंग

स्त्री की

रही सदैव स्त्री संग,

कौन ले सकता उनसे पंगा भला  !

वह तो हैं अंदर से बड़ी ही सशक्त.....,

पर, थोड़ी ईर्ष्यालु जरूर, स्त्रियों के प्रति सदा !!1!!

स्त्री

यदि ठान ले

करना अपना ही उद्धार,

तो, उसे यहाँ कौन है रोक सकता  !

वह तो भरी शक्ति और ओजस्विता से पूर्ण.,,

फिर कौन उनके कदम पीछे खींच सकता !!2!!

मर्द

सहयोगी की

भूमिका में रहा चलता आया,

और सदा ही निभाया भरपूर साथ  !

जुड़ी रही दोनों की जरुरतें परस्पर यहाँ पे..,

और दोनों ने ही तय करी,मंज़िलें पकड़े हाथ !!3!!

नाजुक

है स्त्री

सदैव ही भावनात्मक स्तर पर 

पर, हैं वह आत्मशक्ति का प्रकाश पुंज  !

किन्तु, जब होती हैं उनकी भावनाएं आहत....,

तो, वह कूद पड़ती हैं,जीतने को जीवन जंग !!4!!

नारी

है दुर्गा

सरस्वती भगवती लक्ष्मी गायत्री

और सविता की शाश्वति शक्ति सदा से ही !

मत करना भूल,उसे अबला स्त्री समझने की...,

वरना जला डालेगी वो,कर देगी ख़ाक पल में ही!!5!!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान