अजनबी साथी - सुनील गुप्ता
था चला सफर में, मैं अकेला
मिल गया मुझे एक अजनबी साथी !
संग उसके करते यहां पर बातें......,
वह बन गया मेरा पसंदीदा साथी !!1!!
रहा था पहले वह एक अजनबी
और नहीं था उसका कुछ भी पता !
पर, धीरे-धीरे चलते संग-साथ.....,
वह बनता चला गया मित्र पक्का!!2!!
है ये दुनिया बहुत ही खूबसूरत
और हैं यहां के लोग सभी प्यारे अच्छे !
बस, होगा समझना उन्हें यहां पर..,
और करनी होगी जान-पहचान उनसे !!3!!
पहले पहल सभी लगते हैं अजनबी
और नहीं होती कोई उनकी जानकारी ख़ास !
पर, जैसे-जैसे यहां पे समय गुजरता.....,
वह बन आते हमारे प्रिय सहयोगी विशेष !!4!!
इस जीवन सफर में यहां मिलेंगे हमें
समय-समय पे कई अजनबी साथी !
पर, उनमें से कुछ होंगे भले एवं अच्छे.....,
और वह बन आएंगे हमारे प्रिय साथी !!5!!
मत भूलना कभी किसी अजनबी को
एक बार बनाकर यहां पर साथी !
और संग-साथ देना कठिन समय में.......,
चाहें वह चल ना पाए उम्रभर कभी !!6!!
है ये जीवन की एक कटु सच्चाई
कि, रहे सभी यहां पे अजनबी कभी !
और समय के गुजरने के संग-साथ ही.....,
बन सकें एक दूजे के प्रिय साथी सभी !!7!!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान