मेरे दिल मे रह लो - सुनीता मिश्रा

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ग़ज़ल भी मेरी है ...

पेशकश भी मेरी है मगर....

लफ्ज़ो में छुप के जो बैठे है ...

वो बात तेरी है....

आँखों से छलकते हैं,....

कागज पर उतरते हैं...

कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं जो...

बस भीतर ही पलते हैं...

मुमकिन हो तो ...

मेरे दिल मे रह लो...

इससे हसीन मेरे पास ...

कोई घर नही है ...

️सुनीता मिश्रा, जमशेदपुर