बसंत आया - अनुराधा पाण्डेय

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सुनती बसंत फिर आया है,

कहना मुझको रे ! ग्राम्य सखे !

क्या महुआ फिर अँकुराया है ?

क्या आम्र वनों में ,सच कहना  ,

लघु बौर मृदुल फिर आए हैं ?

आई है चंपा की कलिका ,

तरु में क्या यौवन छाए हैं?

क्या कोकिल की कूकों से ,

फिर प्रेमिल मन बौराया है ?

क्या महुआ फिर अँकुराया है ।

गलियां चौबारों से छन क्या

फिर पावन मंद अमंद मिले ?

प्रेमी अधरों पर क्या हर क्षण,

मृदु विरह-मिलन के छंद मिले ?

चिर अकथ उदासी विरहन से -

क्या विरहा मिलने आया है ?

क्या महुआ फिर अँकुराया है ?

पनघट पर जल लेने आती ,

क्या रमणी पुनः लजाती है ?

दाँतो से दाबे पल्लू  को,

क्या प्रणय कथा कह जाती है ?

क्या राधा फिर कह ! मग्न हुई -

मन का मधुवन हर्षाया है ?

क्या महुआ फ़िर अँकुराया है?

- अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली