मेरी कलम से - क्षमा कौशिक

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दूर शिखरों पर अनुप किरणें सजेंगी,

तरु लताएं फिर हरितिमा से रंगेंगी।

चहुँ दिशाओं में अनुप लाली सजेगी,

खग विहग कल्लोल से कुंजें हंसेंगी।

फिर से सूरज ओज भर आया करेगा,

शीत का पहरा भला कब तक रहेगा?

स्नात पूत वसुंधरा का नित्य नूतन रूप होगा,

पुष्प पल्लव कोंपलों से देह का श्रृंगार होगा।

तितलियां नर्तन करेंगी भ्रमर का गुंजार होगा,

कोकिला का मद भरा संगीत वायु में बहेगा।

वसंत की आगवानी का नवल उल्लास होगा।।

- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड