गीत - मधु शुक्ला
Jan 9, 2023, 22:54 IST
| व्यथा अपनी कहें किससे, सुमन यह सोचता मन में।
यहाँ पर सब लुटेरे हैं, न अपनापन किसी जन में।
मिला तन और मन कोमल, मगर साथी मिले कंटक।
नहीं जब चैन किस्मत में, लिए क्यों जन्म हम नाहक।
हमें मिलता न शुभचिंतक, न मिलता हर्ष उपवन में..... ।
खुशी सब चाहते हम से, खुशी लेकिन नहीं देते।
पवन, जल, धूप, सब मिलकर, हमारा नूर ले लेते।
नहीं मन देखता कोई, रहे बस दृष्टि आनन में........ ।
करूँ मैं ईश से विनती, सबल सबको बनाना प्रभु।
बना कमजोर कुछ जन को, न परवश कर रुलाना प्रभु।
किसी को भेजकर जग में, न देना दर्द धड़कन में........ ।
- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश