गीत - मधु शुक्ला

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घट रही है रोशनी सद्भावना की,

छवि बदलती जा रही है वंदना की।

थे  कभी  परिवार  सामूहिक  हमारे,

हर  पड़ोसी मित्र  के थे  हम  दुलारे।

दूर होंगे हम न हमने कल्पना की........ ।

अब अहं, धन से हुआ है प्यार सबको,

त्याग अब लगने लगा है भार सबको।

शक्ति बढ़ती जा रही है कामना की...... ।

शोर जग में है सिमटते दायरों का,

छल प्रपंची रूप दिखता अब घरों का।

चाहिए दौलत हमें अब प्रार्थना की........ ।

मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश