गीत - मधु शुक्ला
May 14, 2024, 23:14 IST
| घट रही है रोशनी सद्भावना की,
छवि बदलती जा रही है वंदना की।
थे कभी परिवार सामूहिक हमारे,
हर पड़ोसी मित्र के थे हम दुलारे।
दूर होंगे हम न हमने कल्पना की........ ।
अब अहं, धन से हुआ है प्यार सबको,
त्याग अब लगने लगा है भार सबको।
शक्ति बढ़ती जा रही है कामना की...... ।
शोर जग में है सिमटते दायरों का,
छल प्रपंची रूप दिखता अब घरों का।
चाहिए दौलत हमें अब प्रार्थना की........ ।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश