गीत - मधु शुक्ला

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सृजित करता मनुज दौलत सृजित करता न निर्मल मन।

कमाता नाम शुचि मन ही न अपनापन जुटाता धन।

रहे  व्यवहार  में  मृदुता  तभी  संबंध  टिक पाते।

क्षमा, करुणा, दया, ममता उजाला नेह का लाते।

रहे पावन हृदय तब ही इन्हें अर्जित करे जीवन.....।

जहाँ सद्भावना होती वहीं सुख का रहे डेरा।

रहे सहयोग जिस घर में सदन वह दुख नहीं घेरा।

करें जब काम मिल-जुल कर ठहर पाती नहीं अड़चन...।

दिया था ईश निर्मल मन नहीं हम कद्र कर पाये।

बना कर मित्र ईर्ष्या द्वेष को बैचैन मन लाये।

हमेशा ढूँढता रहता हृदय हैरान अपनापन......... ।

 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश