गीत - मधु शुक्ला

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सीमायें सब तोड़ प्रकृति ने, अपना बल दिखलाया है।

अपनी धुन में मस्त मनुज को, कर्मों से मिलवाया है।

मनमानी  का  शौक  रखें  जो, पीड़ा में पछताते  हैं।

शुभचिंतक को दूर खड़ा वे, कठिन समय में पाते हैं।

नहीं कद्र जिनको अपनों की, उन्हें न सुख मिल पाया है...।

सहयोगी आचरण बिना क्या, चलती है दुनियादारी।

सृजन हेतु करनी पड़ती है, सबको मिलकर तैयारी।

अपनेपन में सेंध लगाकर, किसने प्रेम कमाया है...... ।

जाग गये जो सही समय पर, नहीं डूबने पाये हैं।

ईश्वर निर्मित धरोहरों को, श्रम से वे चमकाये हैं।

तालमेल गहने वालों ने, गीत प्रगति का गाया है...... ।

 — मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश