गीत - मधु शुक्ला
Wed, 26 Apr 2023
| 
टूटी है जीवन की कश्ती, बेहद दूर किनारा है,
संसार समंदर गहरा अति, वेगबान अति धारा है।
पतवार कर्म यदि दृढ़ होती, चिंता घेर नहीं पाती,
आसान डगर गहती नैया, हिचकोलों से बच जाती।
समय गँवा कर समझा मन वह, स्वार्थ अहं का मारा है।
संसार समंदर गहरा अति, वेगबान अति धारा है.... ।
जीवन की शाम देखकर मन, झांक रहा बीते कल में,
पछताये बार बार सोचे, व्यस्त रहा वह क्यों छल में।
बन जाता ईश सहायक तब, जब निज दोष निहारा है।
संसार समंदर गहरा अति, वेगबान अति धारा है...... ।
उद्देश्य जनम का यदि हम सब, याद हमेशा रख पाते,
कर पाते सार्थक जीवन को,खुशी बाँट कर मुस्काते।
अज्ञान रहा घेरे तब ही , मन यह नहीं विचारा है।
संसार समंदर गहरा अति, वेगबान अति धारा है....... ।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश