गीत (किसान की पीड़ा) - जसवीर सिंह हलधर

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मिला खून मांटी उगाता हूँ दाने ,यही साधना मैं इसी का पुजारी ।

नहीं धूप देखूँ नहीं छांव देखूँ ,पड़े पाँव छाले नहीं हैं सवारी ।।

न बेटा पढ़ा है न बेटी पढ़ी है ,नहीं आड़ कोई न कोई बसेरा ।

मरूँ भूख से या चवा जाय कर्जा , नहीं रात देखूँ न देखूँ सवेरा ।

करूं आत्म हत्या की बाघी बनूं मैं , बता दो तरीका चुके ये उधारी ।।

मिला खून मांटी उगाता हूँ दाने यही साधना में इसी का पुजारी ।।1।।

न देखूँ उजाला न ओढा दुसाला ,फिरूँ रोज भागा यही काम मेरा ।

चहूँ ओर नागों बसी बस्तियां हैं ,मुझे जो बचा ले न आया सपेरा ।

चलें दाव नेता फसा जाल पंक्षी, सभी दल हमारे बने हैं शिकारी ।।

मिला खून मांटी उगाता हूँ दाने,यही साधना मैं इसी का पुजारी ।।2।।

यहाँ कर्ज से कौन जीता कहाँ है ,यहाँ भूख से कौन हारा नहीं है ।

न नेता न मंत्री न कोई मिला है ,पड़ा आन सूखा सहारा नहीं है ।

बचा लो मुझे दाम दे के फसल का ,मुझे दान मत दो नहीं मैं भिकारी ।।

मिला खून मांटी उगाता हूं दाने ,यही साधना मैं इसी का पुजारी ।।3।।

उगा के भी सोना हुए भाव मिट्टी ,फसा बीच धारा किनारा नहीं है ।

न आँसू  न आहें न कोई गिला है ,भले ही यहाँ पै गुजारा नहीं है ।

न राहत मिली है न कोई सहारा,गले पे रखी खून प्यासी दुधारी ।।

मिला खून मांटी उगाता हूं दाने यही साधना मैं इसी का पुजारी ।।4।।

करूँ काम खेती नहीं भीख माँगूँ ,कुआ रोज खोदूँ  पिऊँ रोज पानी ।

गुजारा न होता कहां भाग जाऊँ ,न दाना न पानी यही है कहानी ।

जवां बेटियों की न शादी हुई है ,इसी आस में सुस्त रहती दुलारी ।।

मिला खून मांटी उगाता हूं दाने ,यही साधना मैं इसी का पुजारी ।।5।।

कभी ना मिला दाम पूरा हमें तो ,नहीं रास आयी न भाती किसानी ।

बता दोष मेरा बता खोट मेरा ,न आया बुढ़ापा जली है जवानी ।

पुरानी लंगोटी फटी एक धोती ,रहे नग्न आधी बहुरिया हमारी ।।

मिला खून मांटी उगाता हूँ दाने,यही साधना मैं इसी का पुजारी ।।6।।

लुटा मान मेरा किसानी लबादा ,फटी पाग देखूँ कि वादा निभाऊँ ।

फसी नाव मेरी न दिखता किनारा ,फटी एक धोती कि धोऊँ सुखाऊँ ।

मुझे अन्न दाता कहे भाषणों में ,वही सूट पहने हुए है सफारी ।।

मिला खून मांटी उगाता हूं दाने ,यही साधना में इसी का पुजारी ।।7।।

कभी रोग खाये कभी बाढ़ आये ,लुटा आशियाना कहाँ से बचाऊँ ।

लगाए जो नारा वो नेता हमारा ,वही खेत खाया किसे ये बताऊँ ।

घना है कुहासा बना हूँ तमाशा ,उड़ी छान"हलधर " गिरी है अटारी ।।

मिला खून मांटी उगाता हूं दाने यही साधना मैं इसी का पुजारी ।।8।।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून