गीत (फाग विरह) - जसवीर सिंह हलधर

हाय बीत गया फागुन मुझे, पिया अकेला छोड़ गए ।
सरहद बन गयी सौतन, पिया सारे वादे तोड़ गए ।।
बासंती बयार चली ,राग रंग गली गली ,
मुझको पिया के मीठे वादे सताने लगे ।
टेसू रंग लाल लाल , बेरी दिखता गुलाल ,
फागुन रास रंग मुझको चिढ़ाने लगे ।
मधुमांस जलाए बदन, छालों पर गरल निचोड़ गए ।।
सरहद बन गयी सौतन, पिया सारे वादे तोड़ गए !!1!!
कल रात पिया मेरे, सपने में आए सखी ,
मैंने हाथ थामा तो बहियां छुड़ाने लगे ।
जाने कैसी बंदूक साथ में लिए थे सखी ,
मुझे उस बैरन के गुण समझाने लगे ।
सपनों में जला चमन वादों की गगरिया फोड़ गए ।।
सरहद बन गयी सौतन पिया सारे वादे तोड़ गए !!2!!
दानिनी मचल उठी ,क्रोध मुझे आया सखी ,
प्रेम की पिपासा छोड़ कर लाम जाने लगे ।
रागिनी थिरक रही ,अंग अंग मेरे सखी ,
आकुल नयन मेरे नीर बरसाने लगे ।
मैं करती रही रुदन वो भरी कलाई मरोड़ गए ।।
सरहद बन गयी सौतन पिया सारे वादे तोड़ गए !!3!!
रोम रोम पिया पिया ,दोहराता गात सखी ,
सपने के दृश्य मुझे तीर सा चुभाने लगे ।
पिया पिया बोलता है ,मन का पपीहा सखी ,
अखियां खुली तो कागा ढाढ़स बंधाने लगे ।
"हलधर" घवराये मन पिया, क्यों मुझसे मुँह मोड गए ।।
सरहद बन गयी सौतन पिया सारे वादे तोड़ गए !!4!!
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून