गीत (लोकशाही की जंग) - जसवीर सिंह हलधर
लोकशाही में अनौखी जंग होती जा रही ।
संघ ढांचे की परिधि भी तंग होती जा रही ।।
राजगद्दी के लिए नेता गिरे हैं इस कदर ।
कौन जाने कब कहां किस शहर में होवे गदर ।
अब चुनावी घोषणा बदरंग होती जा रही ।।
लोक शाही में अनौखी जंग होती जा रही ।।1
नेकनीयत का कहीं नामोनिशां दिखता नहीं ।
भाषणों के तीर से घायल हुई है ये ज़मीं।
राष्ट्र गरिमा देश में अब भंग होती जा रही ।।
लोक शाही में अनौखी जंग होती जा रही ।।2
राज करने का नशा घटिया हुआ है देश में ।
आदमीयत रो रही है राक्षसी परिवेश में ।
दूध घी मटकी नशे की छंग होती जा रही ।।
लोकशाही में अनौखी जंग होती जा रही ।।3
खून इतना पी चुके हैं राजनेता कौम का ।
देखकर इनका तरीका वक्ष फटता व्योम का ।
प्यास इनकी ये दिनों दिन यंग होती जा रही ।।
लोक शाही में अनौखी जंग होती जा रही ।।4
भूख की चर्चा खिसककर हाशिये पर जा टिकी ।
नौकरी से पेंशन सरकार के हाथों बिकी ।
बात मज़हब की यहां बे ढंग होती जा रही ।।
लोकशाही में अनौखी जंग होती जा रही ।।5
ताक पर है गोपनियता मान मर्यादा यहां ।
दौर है गारंटियों का लुप्त है वादा यहां ।
सब दलों की सोच ही कुछ नंग होती जा रही ।।
लोकशाही में अनोखी जंग होती जा रही ।।6
लग रहे आरोप प्रत्यारोप दोनों ओर से ।
कौन कितना गिर गया ये रात पूछे भोर से ।
खेल"हलधर" देख जनता दंग होती जा रही ।
लोकशाही में अनौखी जंग होती जा रही ।।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून