कभी सोचता हूँ - विनोद निराश
Jul 25, 2023, 22:59 IST
| कभी सोचता हूँ ,
बारिस में रख दूँ ,
ज़िंदगी के उन पन्नो को ,
जिन पर आज ,
वक़्त की गर्द जम चुकी।
कभी सोचता हूँ
कहीं धुल न जाए ,
वो कस्मे-वादे, कुछ यादें,
जो किये थे कभी,
डूबते सूरज की कसम खा कर ।
कभी सोचता हूँ ,
कही गला न दे ,
तेज़ बारिस की ज़िद्दी बूंदे ,
उस अधूरे वर्क को जिस पर ,
तेरी मुहब्बत के निशां बाकी है।
कभी सोचता हूँ ,
कि फिर से लिखूं मैं ,
कोई किताब मुहब्बत की,
जिसकी प्रस्तावना तुम, उपसंहार मैं रहूँ,
रूपरेखा में कोई तीसरा न हो।
कभी सोचता हूँ,
क्या मेरा ये सोचना वाज़िब है,
या वहम है कोई निराश दिल का,
जो हर पल ख़ामोशी इख़्तियार किये रहता है,
इक नया ख्वाब तामीर करने को।
- विनोद निराश , देहरादून