एकांत (लघु कथा) - झरना माथुर

 | 
pic

vivratidarpan.com - घर में आज सुबह से तैयारी हो रही थी। बेटा विदेश से आने वाला था। माया तरह-तरह के पकवान बना रही थी। अनिल  बाहर से सामान लाने में लगे हुए थे, कि कोई भी किसी तरीके की कमी न रह जाए। बेटा विदेश से 4 साल बाद लौट के आ रहा था। उसके साथ उसकी पत्नी और उसका बेटा भी था।

अचानक से हॉर्न की आवाज आई। टैक्सी घर के बाहर ही रुकी थी। बेटा अपनी पत्नी और बच्चे के साथ घर पहुंच चुका था। सब आपस में मिलकर बहुत खुश हो रहे थे। लेकिन फिर वही 4 दिन बाद उसे फिर विदेश जाना था ।

अनिल अपनी पत्नी से कह रहे थे। "कल ये सब लोग चले जायेंगे"

माया ने भी गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, हां हमलोग फिर अकेले ही..."

जब बेटे की विदेश में नौकरी लगी थी। तब अनिल और माया की खुशी का ठिकाना नहीं था, लेकिन आज हालात ऐसे है न वो अकेले ही रह पा रहे है और न ही बेटे के साथ विदेश में। उन लोगों के  जीवन में फिर वही  खालीपन था।

अचानक से माया ने कहा कि बेटे से बात करती हूं कि वो अपने देश में ही नौकरी कर ले। अब विदेश न जाएं।

पीछे से बेटे ने ये बात सुन ली और मां से बोला,"ये आप क्या कह रही है। "मैं अब अपने देश में नौकरी कैसे कर सकता हूं?। विदेश में मेरा कैरियर है,तभी बहू भी आ गई उसने भी अपने पति की बात पे सहमति जताई।

खेलते खेलते अनिल का पोता वहा आ गया और  दादा की गोद में बैठ गया और अपने पापा से इंडिया में रहने की जिद करने लगा। ये देखकर माया की आंखे छलक आई। ये सब देखकर बेटा और बहू भी कुछ सोचने लगे....।     - झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड