मृदु व्यवहार- कालिका प्रसाद

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सजना सवरना अब छोड़ दो ,

अब दर्द  के गीत लिख  दो।

आगजनी को छोड़ करके ,

संवेदना  संगीत  लिख दो।

पेड़ के    पत्ते    पुकार रहे है ,

शाख पर कोयल को बैठने दो।

दीप जल   जाए   हर घर में ,

प्रीत गीत सभी  लिख   दो।

कृष्ण जब  तब हैं   सारथी है ,

पार्थ को चिंता किस बात की ।

द्रोपदी   के   भाग्य में   अब ,

तात निश्चित जीत लिख दो।

धर्म का  जिसने  साथ छोड़ा ,

वह आगे बढ नहीं   सकता।

उसके  भाग्य में पराजय है  ,

ये   पुराणों    में   लिखा है।

प्रेम ही जीवन  का सार  है,

ये  हमारे   वेद    कहते  है।

छल   दंभ   यदि    है   तो,

पुनीत  उसका  कैसे होगा।

 विष यदि   घट में    भरा है,

 कण्ठ  कैसे    मधुर   होगा।

दिलों पर यदि राज करना है तो

मृदु व्यवहार सबसे करना होगा।

- कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार

रूद्रप्रयाग उत्तराखण्ड