सिया राम वंदन - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
(आधार छंद- भुजंग प्रयात छंद)
सिया राम सबके दिलों में रहेंगे,
सभी कार्य उनकी कृपा से सधेंगे।
रहे ताकते राह सब लोग कब से,
बसे टाट में जब गिरा ढाँचा’ तब से।
बड़े बंधनों में दरश दें अभी तक,
नये गेह में साँस लें लाल अब से।
नवेले भवन फिर खुशी से बनेंगे।
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विराजे लला टाट-तंबू के’ अंदर,
गया था अटक भावना का समंदर।
गहन पीर सबके हृदय में बसी थी,
अवधपति पुनः अब बनें रामचंदर।
सुबह शाम अब शंख-घण्टे बजेंगे।
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न सद्भाव बिगड़े न दंगल कहीं हो,
जहाँ प्रभु बसें सर्व मंगल वहीं हो।
हुआ अंत बनवास का शुभ घड़ी में,
विद्वेष मन में किसी के नहीं हो।
भरे भाव दर्शन सभी जन करेंगे।
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बना नव्य मन्दिर लला का सुहाना,
बदल अब गया है लला का ठिकाना।
मनोहर सुकोमल दिखें शस्य श्यामल,
दरश पा अनंदित लला का जमाना।
पुराने-नये सब भवन अब सजेंगे।
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बजे दुंदुभी राम की अब हमारे,
अयोध्या सजी राम जी जब पधारे।
जिधर दृष्टि जाती उधर लोग दिखते,
लगा टकटकी भक्त प्रभु को निहारे।
नयन भर दरश अब सभी जन करेंगे।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश