एकल सब इंसान - डॉo सत्यवान सौरभ

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फुर्र-फुर्र सी जिंदगी, फुर्सत का क्या काम।

पास सभी के हो गए, इतने सारे काम॥

भाग दौड़ की सड़क पर, लगते लम्बे जाम।

नहीं बची पगडंडियाँ, जिन पर था आराम॥

बाग़ बगीचे उजड़ है, नहीं किसी को ध्यान।

समझ रहे है आज सब, दो गमलों में शान॥

चिट्टी पत्री बंद सब, उनका क्या अब काम।

आते दिनभर है बहुत, व्हाट्सऐप्प पर पैगाम॥

रिश्तों पर अब जम गए, अकड़ ऐंठ अहसान।

सगे सम्बन्धी है नहीं, एकल सब इंसान॥

सुविधाओं के ढेर पर, बैठा हर इंसान।

फिर भी भीतर से बहुत, सौरभ सब परेशान॥

बदल रहे इस दौर में, किसको इतना ध्यान।

साथ बैठ भोजन करें, करना समय प्रदान॥

- डॉo सत्यवान सौरभ, 333, परी वाटिका,

कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा

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