शिवशंकर - संगम त्रिपाठी

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नील व्योम शिव लिंग मनोहर,स्वामी दीन दयाला,

उदित हुआ शंकर रवि मनहर,फैला सकल उजाला।

शंकर नाम मर्म की ताली,खोले भव का ताला,

नीलकंठ ने कंठ उतारा,कालकूट विष प्याला।

अंग प्रत्यंग भुजंग विभूषित,कटि सोहे मृग छाला,

अभयंकर ने मेरे मन का,भय भ्रम दूर निकाला।

मन मकड़ी ने बांधा खुद को, बुना स्वयं ही जाला,

जब भी मैं मार्ग से भटका, प्रभु ने स्वयं संभाला।

शिव भक्ति का पावन पादप,भाव सलिल से पाला,

मेरे कष्ट हरें गिरिजापति, दुख भंजन कृपाला।

-  कवि संगम त्रिपाठी, जबलपुर , मध्य प्रदेश