शिव - एकता गुप्ता

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शमशान वासी होके भी गृहस्थ है,

वो विष को स्वयं पी के अमृत के दानी है,

वो जन्म से परे मृतुन्जय है,

वो भिन्न नही है दोनों एक ही है,

शिव शक्ति इसलिए अर्धनारीश्वर है।

वो देवो के महादेव है,

वो काल के भी महाकाल है,

शंकर समय आधीन है,

जिसके वो कालेश्वर है,

वो होली खेले मसाने में देखो,

उस वीराने को नही आबाद करें।

वो न जन्मे न मृत्यु उनकी,

न वो मन न बुद्धि न चित अहंकार उनमें,

न लोभ न मोह है कोई,

न ईर्ष्या करे वो कोई,

न धन राग न कोई विषयन्ता,

न सुख न कोई दुख का एहसास भी होता।

न गुण न अवगुण कोई,

अद्धभुत है जिनके गण ऐसे औघड़ है,

जिनके जटा में रहती शान से गंगा,

वो ही जगत चेतना है आदि अनंतता।

- एकता गुप्ता, पलिय कलां खीरी,  उत्तर प्रदेश