षष्ठ रूप (मां कात्यायिनी) - डा० क्षमा कौशिक

 | 
pic

षष्ठ रूप कात्यायिनी, माता अष्ट भुजी का।

दुष्टों की संहारक दुर्गा,जगदम्बे का।।

ऋषिगृह जन्मी भक्तवत्सला, मातु भवानी।

कात्यायन की सुता कहाई आदि भवानी।।

जब जब विपदा आई ,देवों पर अति भारी।

दुर्धर रूप धरा माता ने बनी कराली।।

महिषासुर एक महाबली, दुर्धर दानव था।

देवों का देवत्व छीन दुर्जेय बना था।।

यज्ञों का सब भाग स्वयं ही ले लेता था।

श्री हीन देवों को त्रास बहुत देता था।।

देवों ने तब मां दुर्गा की पूजा कीन्हीं।

रक्षा करने की माता से विनती कीन्हीं।।

रूप धरा विकराल, समर चंडी बन आई।

महिषासुर का वध किया,जगती हर्षाई।।

कर दानव संहार,मोक्ष उसको दे दीन्हा।

अभयदान देकर देवों को निर्भय कीन्हा।।

महिष मर्दिनी कहलाई कात्यायनी माता।

षष्ठ दिवस उनका पूजन है सुख का दाता।

- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड