शक - सुनील गुप्ता

शक मत करना हमपे यारों
करते हैं तुमसे बेपनाह प्यार !
बात-बात में छोड़ो करना संदेह......,
और करो स्वयं पर सदा एतबार !!1!!
शक का नहीं है कोई इलाज
बस, ख़ुद पे करें सदा ही विश्वास !
चलें समझते औरों को यहां......,
और देखें औरों में सत्य प्रकाश !!2!!
शक-ओ-शुबह से बचते चलें
और नहीं करें किसी पे शंका !
औरों की बातों को समझें.......,
और नहीं पालें मन में कोई आशंका !!3!!
शक से टूटें बिखरें संबंध
और नहीं रहे फिर उनमें घनिष्टता !
कभी नहीं पालें आपस में भ्रम.....,
और बढ़ाए चलें प्रेम आत्मीयता !!4!!
शक से ना होएं कभी काम
और काम बिगड़ते चले जाएं !
ये करे तन मन को यहां परेशां.....,
और जीवन में तनाव सदा बढ़ाए !!5!!
शक से ग़र बचना चाहें हम
तो, स्वयं पर हम विश्वास धरें !
और अपने अच्छे अनुभवों को सदा....,
हम याद करते यहां पर चलें !!6!!
शक शुबह शंका संदेह वहम,
हैं सभी बीमारी के संकेत !
इसे ना दें बढ़ने हम यहां पर......,
और डालें चलें इसपे नकेल !!7!!
शक को कभी पनपने ना दें
और इसे शुरू होते ही करें समाप्त !
ये छोड़े नहीं कहीं का भी हमें......,
और चले करता संबंधों का नाश !!8!!
हो ग़र स्वयं पर ही हमें भरोसा
तो, देनी नहीं पड़ती है यहां सफाई !
शक ग़र हो जाए अपनों में ही पैदा....,
तो, फिर देनी नहीं चाहिए, रिश्तों की दुहाई !!9!!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान