द्वितीय नवरात्र - क्षमा कौशिक

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ब्रह्म चारिणी, तपश्चारिणी ,शुभ कल्याणी*

हस्त कमंडल माल धरे,शुभ वस्त्रधारिणी।

शिव अनुरक्ता आदि भवानी मां कल्याणी*

छोड़ दिया घर द्वार,तपस्या की मन ठानी

घोर तपस्या के फल अनुपम तेज हो गया।*

श्वेत वरन मां हुई अनूपम रूप हो गया।।

वर्षों तक केवल वृक्ष के पात ही खाए।

त्याग दिए जब पात अपर्णा मां कहलाई।।

तप संयम वैराग्य त्याग को धारण करती।

ब्रह्मचारिणी मां सब के संकट हर लेती।।

चंद्रमौली ने माता को इच्छित वर दीन्हा।

प्रिया रूप में ब्रह्मचारिणी मां को चीन्हा।।

जय गायत्री वेद की माता जन सुख दाता।

सब सुख पाता जो तेरा नित ध्यान लगाता ।।

-  डा० क्षमा कौशिक, देहरादून, उत्तराखंड