उबारो आज जगमोहन - अनिरुद्ध कुमार

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चरण वंदन, करूँ स्वामी, सहा जाता, नहीं क्रंदन।

किधर को जा रही दुनियाँ, सभी करते, यही चिंतन।

किसे कोई, कहे अपना, रहे व्याकुल, सदा तन मन।

बता कैसे, जियें जगमें, कठिन लगता यहाँ जीवन।।

दया का नाम भूले सब, यही चारो तरफ उलझन।

भलाई का नहीं सोंचे, फिकर में देख उलझा मन।

सहारा कौन है किसका, कराहे आज हर जीवन।

इशारा देखते सबका,भयावह आज घर आंगन।।

कृपा करना दया सागर, मगन चितसे करें सुमिरन।

जगादें प्यार हर दिल में, खिले जीवन, लगे मधुबन।

झुका सर द्वार पर ठारे, चढ़ाते प्रीत का चंदन।

नहीं सुझे, किनारा अब, बजा बंसी, मिटे अनबन।।  

मिटा देना, उदासी को, खुशी से झूम गाये मन।

बहा दे प्रेम की गंगा, यही इच्छा, सदा भगवन।

लगाये आस बैठे हैं, निखर जाये, जहाँ कण-कण।

दुआ मांगे,दया करना, उबारो आज जगमोहन।।                           

- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड