सरसी छंद - मधु शुक्ला

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नहीं देखता इश्क कभी भी, रूप रंग धन नाम,

पावन मन का रहे पुजारी, कहे हृदय को धाम।

रंगत लाता प्रेम उन्हीं का, जिन्हें वफा हो ज्ञात,

अपनापन  भावों  में  रखते, सदा  कहें मृदु बात।

सुख का हो या दुख का मौसम, रहता सदा समान,

समय साथ दे उसका सजती, होठों  पर  मुस्कान।

गुनगुन करतीं तभी फिजाएं, जब हो मन में प्यार,

सद्भावों  की  पवन  चले  तब, बनती  सखा  बहार।

---- मधु शुक्ला . सतना , मध्यप्रदेश