सरस्वती वंदना - जसवीर सिंह हलधर

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हे  मात शारदा तू मुझ पर ,इतनी सी अनुकंपा कर दे ।

वाणी से जग को जीत सकूँ ,मेरे गीतों में लय भर दे ।।

शब्दों छंदों का भिक्षुक हूँ ,मैं मांग रहा कुछ और नहीं ।

जाने कब सांस उखड़ जाए ,जीवन की कोई ठौर नहीं ।

मेरी छोटी सी चाह यही ,धन दौलत की परवाह नहीं ,

इस शब्द सिंधु को पार करूँ ,उन्मुक्त कल्पना को पर दे ।।

कलियों के हार बनाये हैं , तुझको पहनाने को मैया ।

 फूलों से रस खिचवाये हैं ,तुझको नहलाने को मैया ।

खिड़की दरवाजे छंद कहें ,दीवारें गीत ग़ज़ल गायें ,

तुलसी की चौपाई गूँजें ,ऐसा मुझको सुरभित घर दे ।।

काया ये मांटी का पुतला ,मानव औ पशु में अंतर क्या ।

वाणी बिन पता नहीं चलता ,गाली या जंतर मंतर क्या ।

पूरी अब खोज करो मैया ,वाणी में ओज भरो मैया ,

गूजूं मैं दसों दिशाओं में ,मैया मुझको ऐसा स्वर दे ।।

दिनकर जैसा कुछ लिख पाऊँ ,मुझको वरदान यही देना ।

जन गण के द्वंद्व गीत गाऊँ , मुझको अनुमान सही देना ।

तेरे चरणों में बिछ जाऊँ , धरती से नभ को खिंच जाऊँ ,

दुनियाँ में गीत अमर होवें ,"हलधर"को कुछ ऐसा वर दे ।।

हे मात शारदा तू मुझ पर ,इतनी सी अनुकंपा कर दे ।।।।

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून