सरस्वती वंदना - जसवीर सिंह हलधर

हे मात शारदा तू मुझ पर , इतनी सी अनुकंपा कर दे ।
वाणी से जग को जीत सकूँ , मेरे गीतों में लय भर दे ।।
शब्दों छंदों का भिक्षुक हूँ , मैं मांग रहा कुछ और नहीं ।
जाने कब सांस उखड़ जाए , जीवन की कोई ठौर नहीं ।
मेरी छोटी सी चाह यही , धन दौलत की परवाह नहीं ,
इस शब्द सिंधु को पार करूँ , उन्मुक्त कल्पना को पर दे ।।1
कलियों के हार बनाये हैं , तुझको पहनाने को मैया ।
फूलों से रस खिचवाये हैं , तुझको नहलाने को मैया ।
खिड़की दरवाजे छंद कहें , दीवारें गीत ग़ज़ल गायें ,
तुलसी की चौपाई गूँजें ,ऐसा मुझको सुरभित घर दे ।।2
काया ये मांटी का पुतला , मानव औ पशु में अंतर क्या ।
वाणी बिन पता नहीं चलता , गाली या जंतर मंतर क्या ।
पूरी अब खोज करो मैया , वाणी में ओज भरो मैया ,
गूजूं मैं दसों दिशाओं में , मैया मुझको ऐसा स्वर दे ।।3
दिनकर जैसा कुछ लिख पाऊँ , मुझको वरदान यही देना ।
जन गण के द्वंद्व गीत गाऊँ , मुझको अनुमान सही देना ।
तेरे चरणों में बिछ जाऊँ , धरती से नभ को खिंच जाऊँ ,
दुनियाँ में गीत अमर होवें ,"हलधर"को कुछ ऐसा वर दे ।।4
हे मात शारदा तू मुझ पर ,इतनी सी अनुकंपा कर दे ।।।।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून