सप्तपदी - सुनील गुप्ता
(1)"स", सफल होए शुभविवाह सफर
जब लें वर-वधू वचन यहां सात !
जीवन के इस पुनीत महायज्ञ में.....,
मिल चलें डालते आहूति एक साथ !!
(2)"प् ", प्यार प्रेम का ये पवित्र बंधन
सदा बना रहे जन्म-जन्मों तक !
कभी टूटने ना पाए आत्मीय संबंध.....,
और चले विश्वास होता नित प्रगाढ़तम !!
(3)"त ", तक़दीर मिलाए यहां जोड़ों को
है जन्म मरण परण नियति हाथ !
चले बनाएं जीवन को ख़ुशगवार.....,
और रहें मिलकर सदा यहां एक साथ !!
(4)"प ", परस्पर प्रेम सहयोग और सहिष्णुता
बने आधार स्तंभ सुखी जीवन के !
है सप्तपदी का यही मूल उद्देश्य....,
कि, निभाए चलें जीवन मिल-जुल के !!
(5)"दी ", दीपशिखासा है दाम्पत्य संबंध
जो चले करता रोशन जीवन !
हैं वर वधू इस रथके दो पहिए....,
जो चलें सुख-दुःख में बना संतुलन !!
(6)"सप्तपदी ", सप्तपदी में दिए वो सात वचन
चलें बांधते वर वधू को यहां पर !
और कभी टूटने ना पाए संबंध....,
यही याद दिलाए ये जीवन भर !!
(7)"सप्तपदी ", सप्तपदी है दाम्पत्य का आधार
और सुखी जीवन जीने का मूल मंत्र !
चलें बढ़ाए प्रेम आत्मीयता भरपूर.......,
जो बनाए रखे सदा, एक दूजे को मित्र !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान