सफर - सुनील गुप्ता

(1)"स", सच में सफर अभी तो शुरू हुआ है
बचपन से अब तक पता चला ना !
कब बीत गए वो दिन सुनहरे.........,
अब बड़े हुए तो पता चला यहां !!
(2)"फ ", फरियाद करें यहां किससे अपनी
है जीवन का सबका अपना ही किस्सा !
वक़्त कहां यहां ठहरा है करता.....,
मिला सभी को यहां अपना ही हिस्सा !!
(3)"र ", रफ्तार से दौड़ रहा समय है
पल-पल बुनते सपने नए हैं !
कल की चिंता में वर्तमान को....,
खोते क्यों हम यहां चले जा रहे हैं !!
(4)" सफर", सफर है लंबा और अनिश्चित
किया तय नहीं जाना कहां पर है !
ढ़ो रहे हम बोझ अति भारी.....,
और कल का पता ठिकाना यहां नहीं है !!
(5) ये उम्र बिना रुके सफर कर रही
और हम ख्वाहिशें वहीं लेकर हैं खड़े !
अगले पल का है पता नहीं यहां.....,
और महल सपनों का कर रहे हैं खड़े !!
(6) सफर को सफ़र समझ के हे प्यारे
तू करता चल पूरा ये सफर यहां पर !
जो बीता उसको भूला दे........,
चल राह पकड़ मंज़िल की यहां पर !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान