गणतंत्र दिवस : भारत का संविधान और मानवाधिकार - श्रीमती सुधा रानी श्रीवास्तव एडवोकेट

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vivratidarpan.com - सम्मानपूर्वक जीवन यापन यह मानवाधिकार की धुरी है। मनुष्य किसी भी जाति धर्म देश का निवासी हो उसे शासन द्वारा सम्मानपूर्वक जीवन यापन की सुविधा सुरक्षा और विकास के साधन प्राप्त हो यह मानवाधिकार की परिभाषा है भारत में मानवाधिकार की बात वैदिक काल से है।

धमार्थ काममोवा यत् पुरूषार्थ तया मना:।

साधने मानवास्तेषां स्वभावदधिकारण।।

भावार्थ- सभी मानवों को धर्म अर्थ काम का अधिकार है। सभ्यता का अंकुर इसी मानवाधिकार की अवधारणा के बीज से फूटा है। परोपकार, अहिंसा, दया आदि संसार के सभी धर्मों के आधार में मानवाधिकार ही निहित है।

26 जनवरी सन् 1950 से भारत में अपना संविधान लागू है। भारत के संविधान में मानवाधिकार की भावना सर्वोपरि है। समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व भारत के संविधान की प्रतिज्ञा है। संविधान निर्माण समिति ने मानवाधिकार की भावना को दृष्टि में रखकर संविधान की रचना की थी।

समानता के अधिकार : संविधान के 14 से 18 अनुच्छेदों में समानता के अधिकारों का वर्णन है यथा-

1. विधि के समक्ष समता।

2. धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर विभेदों का प्रतिबंध (जिसे साधारण बोलचाल में धर्म निरपेक्षता कहते हैं)

3. लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता।

4. छुआछूत का अंत एवं

5. उपाधियों का अंत।

 स्वतंत्रता का आधार : अनुच्छेद 19 भारत के संविधान में वाक् स्वातंत्र का प्रावधान है जिसके अंतर्गत-

1. वाक् एवं अभिव्यक्ति स्वातंत्र

2. शांतिपूर्ण निरायुध सम्मेलन

3. संघ का गठन

4. पूरे भारत में बिना रोक टोक के भ्रमण

5. भारत के किसी भी भाग में निवास, एवं

6. भारत के किसी भाग में नौकरी, व्यवसाय, कृषि आदि करने की स्वतंत्रता।

यदि कहीं उपरोक्त संविधान-जन्य भावना का खंडन होता हैतो संविधान के अनुच्छेद 226-227 के अन्तर्गत भारत के किसी भी उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत करने का भारत की जनता को अधिकार है।

संविधान के अनुच्छेद 21 में मानवाधिकार की भावना अत्यंत स्पष्ट है, इसमें प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का उल्लेख है। मानव अधिकार तभी कोई अर्थ रखता है जब मानव जीवित हो। भारत के संविधान में यह अनुच्छेद अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि कोई मनुष्य तभी अधिकारों का उपयोग कर सकता है जब वह जीवित हो। हमारे पास एक प्रकरण आया था। पति पर निम्न न्यायालय ने उसके वेतन के लगभग 70 प्रतिशत की भरण पोषण राशि आदेशित कर दी थी। अर्थात् उसके जीवन यापन के लिये उसके वेतन का 30 प्रतिशत बचता था उसमें भी कटौतियां होती थी। हमने अनुच्छेद 21 भारत के संविधान का आधार लिया और तर्क प्रस्तुत किया कि विवाह दण्ड संहिता में उल्लेखित अपराध नहीं है जिसके लिये उसके वेतन की 70 प्रतिशत राशि दंडित की गई हो वह मात्र 30 प्रतिशत वेतन में कैसे जीवन निर्वाह करेगा। यहां अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हुआ है। उच्च न्यायालय ने हमारा तर्क माना और वेतन के प्रश्न पर पुन: विचार का निम्न न्यायालय को आदेश दिया।

19 दिसम्बर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकारों के विश्व घोषणा पत्र को अंगीकृत घोषित किया था। इसके पूर्व भारत में सन् 1948 में ही संविधान समिति गठित हो गई थी किन्तु उस समय भारत स्वतंत्र नहीं हुआ था, अत: उसे 15 अगस्त, 1947 के पश्चात् मान्यता मिली। इस संविधान परिषद में अनेक विषयों पर समितियां गठित की। इन समितियों की रिपोर्ट आ जाने पर 29 अगस्त, 1947 को भारत के संविधान के प्रारूप तैयार करने का प्रस्ताव पारित हुआ और अढ़ाई वर्ष पश्चात् 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। भारत के संविधान में यद्यपि शब्द मानव अधिकार नहीं है किन्तु यह तो सभी जानते हैं कि संविधान नागरिकों के हित हेतु ही लागू होता है। संविधान वह धुरी है जिसके आधार पर भारत का नागरिक संरक्षण सुविधा, सुरक्षा और विकास के साधन प्राप्त करता है। अत: इसमें मानवाधिकार की भावना निहित है जो कि एक सभ्य देश के नागरिक का अधिकार है। (विभूति फीचर्स)