पुरानी किताबें - रेखा मित्तल

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खोली जब आज कुछ

अलमारी में रखी पुरानी किताबें

मिले कुछ अधूरे ख्वाब,

कुछ खतों का खज़ाना

जो कभी पोस्ट ही नहीं हुए

कुछ सूखे,पर महकते गुलाब

बयां कर रहे थे दास्ताँ

अधूरे प्रेम और इश्क़ की

यादों का समंदर लिए

पीले और कमजोर होते पृष्ठ

अरमानों को समेटे हुए

कुछ नाम लिखे बुकमार्क

सुना रहे थे अनकही कहानियांँ

दोस्ती और अल्हड़पन की

एक किताब जो मेरी नहीं थी

वापिस करना ही भूल गई थी

वह ज़माना ही कुछ और था

जब किताबों का जोर था

साक्षी है यह किताबें

मेरे कुछ अधूरे ख्वाबों की

अपने में समेटे हुए अहसासों की

कुछ नहीं पता,समय कैसे सरक गया

हल्की पदचाप करता हुआ

चुपके से हाथों से फिसल गया

- रेखा मित्तल, सेक्टर-43, चंडीगढ़