कपात { कटौती / Deduction } - प्रदीप सहारे
vivratidarpan.com - राम कुछ निश्चींत था अपने जीवन में कोई ज्यादा ख्वाईश नहीं और ना कोई शिकवा . हमेशा अपने काम में मग्न रहता था और ज्यादा नहीं अपने काम से काम रखता था ।
पता नहीं क्यों ? शायद संघर्ष के बादल जो
बार बार आयें, आकर चले गये !!
राम तहसील के कॉलेज से पदवी परिक्षा पास कर, नौकरी की तलाश में शहर आया
और कुछ ही दिनों बाद उसे एक छोटीसी कंपनी में सहायक की नौकरी मिली । राम बहोत खुश हुवा और साथ ही कुछ सपने भी देखने लगा , कुछ ज्यादा बडे नही बस
पुरे हो इतने ही ।
समय अपने गति से चलने लगा संग राम की भी अपने समय संग चल निकली सुबह उठना नहाना , धोना , खाना पकाना और
अपने छोटे से दो खाने के टिफीन में दो रोटी और सब्जी डालकर ऑफिस के लिए निकलना । चुंकि ऑफिस शहर से 40 किलो मीटर दूर था तो वहां समय पर पहुंचना भी एक अपने आप संघर्ष था ।
धीरे धीरे संघर्ष यह उसके जीवन का अभिन्न अंग बन गया कभी 12 घंटे , कभी 14 तो कभी उससे ज्यादा लेकिन कम नहीं काम में अपने वह मग्न हो जाता था, और हो भी क्यों नहीं , ऑफिस में ज्यादा लोग भी नहीं थे कुछ 7 और एक चपराशी पकड़कर 8 । हाँ ! साहब की भी अपने उपर मर्जी हैं और अपने को खास समझता था, उसका कारण भी उसे लगता था क्योंकि सभी जिम्मेदारी भरे काम साहब उसे सौपते थे और वह लगन से समय पर पुरा भी करता था । और उसे उसका फायदा भी होता था
इंक्रिमेंट - प्रमोशन सभी अच्छा ही रहता या
यूं कहें साहब खुद ही बोलता था " राम इस बार नाम भेज रहा हूं । "
और राम खुश होकर कबिन बाहर आता और ज्यादा काम करने लगता ।
समय बितता गया और इस बीच राम के कुछ सपने भी पुरे हुए । शादी, बच्चे और छोटा घर । आज राम को 15 बरस हुए कंपनी में काम करते हुए HR का मेल देखा
बधाई का , उम्र कुछ 40 - 42 , काम के भरोसे आज वह सहायक प्रबंधक पद तक पहुंच गया , बडी लड़की ने दसवीं की परिक्षा पास की और उसकी आगे की पढाई का नियोजन करने लगा साथ ही बच्चो के भविष्य के बारे में सोचने लगा उसे अपने भविष्य की चिंता नहीं थी क्योंकि कंपनी पर भरोसा था , भरोसा इतना की कहीं छोड जाने की कोशिश भी न की ।
कुछ दिनो से उसका मन कुछ बेचैन रहने लगा , बस यूं कुछ सोचते रहता और अपने आपको मन में समझाता रहता था " नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा , मुझसे बेहतर कौन हैं आज ही तो साहब बुलाएं थे कुछ कहा नहीं । "
बस हल्की हल्की हवा चलनी शुरु हुई थी की उपर मॅनेजमेंट में कुछ बदलाव होने वाला हैं । शायद बाबू जी का लड़का चेअरमैन बनने वाला हैं । "खैर अपने को क्या ! "
आज प्रणीत ने आते ही " गुड मॉर्निग सर " किया . . मुस्कराते हुए मैंने भी प्रति उत्तर दिया । प्रणीत अभी कुछ माह पूर्व ही जोईन
हुवा था । बड़ा अकड़कर चलता , सुना साहब के किसी खास का लडका हैं ।
"छोडो मुझे क्या "
कर्मचारी कपात की हवा कुछ ज्यादा तेज चलने लगी, जैसे सुना था उपर का मॅनेजमेंट बदल गया और युवा चेअरमॅन ने कार्यभार सम्हाला । सब अपने अपने तरीके से कयास लगाने का प्रयास करने लग गये । कोई यह तो कोई वो ..राम भी उसमें एक ।
लेकिन कारण कुछ समझ नहीं आ रहा था,
कंपनी का उत्पादन और फायदा दोनो अच्छे थे , फिर अनायास यह हवा कैसी ।
साहब की भी बोल भाषा अब बदली सी लगने लगी . लेकिन पक्के तौर पर कुछ कह नहीं सकते ।
राम किसी ना किसी बहाने , साहब से कुछ जानने की कोशिश करता, लेकिन व्यर्थ ।
हाँ , उसके दुसरी नौकरी ढुंडने की कोशिश शुरु कर दी, क्योंकि नौकरी ही उसकी प्राथमिकता थी लेकिन कुछ हाथ नहीं लग रहा था । कही उम्र , कही पगार, कही शिक्षा
साथ नहीं दे रही थी ।
आज सुबह आते ही साहब ने सभी स्टाफ को मिटिंग रुम बुलाया , रुटीन था, किसी ने ज्यादा सीरियसली नहीं लिया । सभी लोग मिटिंग रुम पहुंच गये । सब अपने अपने तरह से अंदाज लगाने लगे - साहब आते ही सब शांत ...
साहब आते ही सब उठ खड़े हुए । बैठने का इशारा होते ही सब बैठ गए ।
साहब के माथे पर कुछ शिकन नजर आ रही थी और स्वर भी कुछ बदले से लग रहें थे । भाषा में प्रभाव कुछ कम लग रहा था।
साहब ने गोल मोल भाषा का प्रयोग करते हुए मॅनेजमेंट के बदलाव की जानकारी दी आगे की रणनिति स्पष्ट नहीं लेकिन हिण्ट तो दे ही दी । मिटिंग रूम से बाहर आने के बाद सब अपनी जगह बैठ गये , ऑफिस में सन्नाटा छा गया । अपनी अपनी कमियां और अच्छाई का विश्लेषण करने लगे लेकिन कमियां ना के बराबर । राम भी इसी उधेड़बुन में लगा, कौन होगा, किसका नंबर होगा बस जॉइंनिंग के हिसाब से असेंडिंग - डिसेंडिंग क्रम लगाने लगा। सभी जगह अपने आप को सही साबित करने में लगा ।
शाम हुई सभी अपने घर जाने ऑफिस से निकल पड़े, लेकिन पहले जैसा उत्साह नहीं था। राम भी थका हारा घर पहुंचा और शांत मुद्रा में सोफे पर बैठ गया । बदलाव पर पत्नी की नज़र पडी, चाय देते वक्त पुछा
" क्या हुवा "
कुछ बोला नाही
फिर एक बार पुछा,
" झल्लाकर कुछ बोला " फिर शांत होकर बैठ गया । मन को समझा रहा था लेकिन अंदर से ड़र गया था । कही कुछ हो ना जाएं । आज एक तारीख , सप्ताह का पहला दिन ऑफीस पहुंचते ही आधे घंटे बाद साहब ने बुलाया । कुछ देर इधर उधर देखा और फिर कुछ फाईल देख , बोलना शुरु किया ।
" जैसा की मैंने पहले मॅनेजमेंट बदलाव का कहा , और नए मॅनेजमेंट ने कुछ निर्णय लिए, जिसमें ४० % मॅनपावर कम करने को कहा हैं । मैंने पुरी कोशिश की अपने तरफ से सबको बचाने की लेकिन कोई मान ही नही रहा । हाँ, मुझे हेड ऑफीस से जो नाम आए हैं वह मैं बता देता हूं । मि. राकेश , मि. प्रकाश , मि . राम , मि . ध्रूव आपका इस लेटर के हिसाब से लास्ट वर्किग डे ३० जुन हैं । "
३० जुन गर्म तेल की तरह राम के कानो में सन सन करते हुए दिमाग में तांडव करने लगा । जैसे कोई सर पर हथौडा मार रहा हो और वह सर पकडकर बैठ गया । क्या हो रहा कुछ समझ नही पा रहा था । झटके से केबिन बाहर निकला और अपने टेबल की कुर्सी पर बैठा गया ।
आँखो के सामने अंधेरा छा गया और वह मन में बडबडाने लगा । " यह सही नहीं ,
मैने दिन रात मेहनत की और मुझे ही !!
और वह कल का लोंडा प्रणीत ?
मैं .. मैं .. HR में कम्पलेंट करुंगा । क्या यह उनको नही दिखता ? "
फिर एक ग्लास एक ही घोट में पानी पीया,
साहब नज़र मिलाने कतराने लगा । राम एक प्रश्न लेकर ऑफिस बाहर निकला ।
क्या ? काम का कोई मोल नहीं, नौकरी भी अब संबधो पर चलेगी ।
और घर पहुंचा एक फिर संघर्ष लेकर ...
- प्रदीप सहारे, नागपुर, महाराष्ट्र