जागीं देश के रतन - अनिरुद्ध कुमार

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ललकार रहल गंगा, जमुना में बा उफन`।
पुरवा बड़ी झकोरे, बेचैन बावे मन।
मिल बैठ जरा सोंची, चाहे आपन वतन।
जागीं देश के रतन.............2

गुलगुल लगे गुलिस्ताँ, अंगार बनल चमन।
नफरत के आंधी से, तार-तार बा अमन।
नफरत चलीं मिटाये, चाहे आपन वतन।
जागीं देश के रतन.............2

गैर के शोहबत के, अंजाम हवे जलन।
हर केहू के दिल में, बावे गजबे कुढ़न।
बहकी ना बहकाई, चाहे आपन वतन।
जागीं देश के रतन.............2

सहमल बा हर कोई , चहुं ओर बा हनन।
अपना हीं अपना में, ई कइसन बा चलन।
न भटकी न भटकाई, चाहे आपन वतन
जागीं देश के रतन.............2

निहारे राह जोड़ा, गमगीन बा अंगन।
सुनी कलाईयों में, दहसत भरल कंगन
राखी कसम जुड़ाई, चाहे आपन वतन।
जागीं देश के रतन.............2

नापाक हसरतों के, उतपात रोज नगन।
कश्मीरी घाटी में, होता खेल कइसन।
चल मिल के भिड़ जाईं, चाहे आपन वतन।
जागीं देश के रतन.............2

जोश, जुनून, हौसला, वो वलवला अबरन,
सब कइले रहे वादा, निशानी बा परचम।
परचम के लहराईं, चाहे आपन वतन।
जागीं देशके रतन.............2

जे देहले बलिदान, सब लोगन के नमन।
जे अब तलक अड़ल बा, हवे नूर दो नयन।
चलीं मिल गीत गाईं, चाहे आपन वतन।
जागीं देश के रतन.............2

ई बाग ह राणा के, शिवा के हवे गगन।
बीरन के लोरी में, झाँसी बाड़ी मगन।
जागीं सुभाष जागीं, चाहे आपन वतन।
जागीं देश के रतन.............2

जन-जन होई सच्चा, गुलजार हो गुलशन।
मिल्लत से रहला में, बा देश के यौवन।
मिल देश गान गाईं, चाहे आपन वतन।
जागीं देशके रतन.............2
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड