रंगीला फागुन - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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पर्व अनूठा है होली का, दमके सबके भाल,

बाल-वृंद या नर-नारी सब, खेलें रंग गुलाल।

मन के मैल दूर हो जाते, खुलतीं उर की गांठ,

प्रेम भाव सब के तन-मन में, होते लुप्त बवाल।

बरसाने में होली खेलें, कान्हा, ग्वालिन ग्वाल,

भक्ति भाव में डूब यहाँ पर, होता खूब धमाल।

रास-रंग में डूबीं राधा, वासुदेव बरजोर,

प्रेम रंग में रँगे युगल की, शोभा बड़ी विशाल।

सबको रँगने को सब आतुर, कर लेकर चित्राल,

भंग तरंग उठाती तन में, करती आँखें लाल।

तरह-तरह के पकवानों का, लगता प्रभु को भोग,

सब होली की करें प्रतीक्षा, मन से सालों-साल।

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश