राममय मुक्तावली - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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जन समुद्र अब उमड़ रहा है, मन्दिर हो या सरयू तीर,

श्यामल सौम्य गात है प्रभु का, लेकिन दिखते हैं अति वीर।

नयन बोलते से लगते हैं, परम मनोहर उनमें भाव,

दर्शन पाकर मिट जाती है, दबी हुई वर्षों की पीर।

दर्शन को आतुर नर-नारी, पंक्तिबद्ध होते हर भोर,

अपलक हो कर सभी निहारें, सब मन होते भाव विभोर।

भरे नहीं मन एक बार में, फिर दर्शन की उठती चाह,

बारम्बार लगें जयकारे, मन्दिर में नित चारों ओर।

मन्दिर भव्य मनोहर पावन, बना राष्ट्र की नव पहचान,

नूतन और पुरातन पद्धति, फूँक रही आलय में प्राण।

सुदृढ नींव पर खड़ा हुआ है, प्रांगण सुंदर बड़ा विशाल,

कीर्ति फैलती सकल विश्व में, बढ़ा विश्वगुरु का अब मान।

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश