बरकतों वाला महीना है रमजान उल मुबारक - फतहउल्ला

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vivratidarpan.com - रमजान उल मुबारक वह महीना है, जिसका दुनिया भर के करोड़ों मुसलमानों को साल भर इंतजार रहता है। रमजान के महीने में एक बड़ा खूबसूरत सा मंजर तमाम दुनिया में देखने में आता है कि तमाम मुसलमान इबादत में मसरुफ रहते हैं और मस्जिदों की रौनक बढ़ जाती है।

इस्लामी दृष्टिकोण से रमजान बहुत बरकतों और फजीलतों वाला महीना है। इस मुकद्दस और बाबरकत महीने में ही आसमान से कुरान पाक इस्लाम के जनक पैगम्बर हजरत मोहम्मद सल. पर नाजिल हुआ, जिसमें पूरी दुनिया के लिए सच्चाई और भलाई का रास्ता बताया है। इस महीने में मुसलमान दिन में रोजा रखते हैं और रात को तरावीह अदा करते हैं।

रोजे को अरबी में 'सोम' कहते हैं। सोम के मायने बातचीत या खाने-पीने से रुक जाने से है और शरीअत (इस्लामी विधान) में सुबह पूर्व से सूरज डूबने तक खाना-पीना छोडऩे, औरतों से अलग रहने और बुरी बातों से बचने को सौमया रोजा कहते हैं। हजरत मोहम्मद सा. जब तक मक्का में रहे बराबर नफिल रोजे रखते थे। मगर तब तक रमजान का रोजा खुदा की जानिब से फर्ज नहीं हुआ था। जब आप सल्ल. मक्का में हिजरत (विस्थापन) करके मदीना तशरीफ ले गये तो वहां जाने के डेढ़ वर्ष बाद 2 हिजरी में  रमजान के पूरे रोजे फर्ज किये गये। तरावीह के मायने वक्फे-वक्फे के बाद कुछ देर आराम या सुस्ताने के हैं चूंकि तरावीह नमाज में हर चार रकातों के बाद कुछ देर आराम किया जाता है। इसीलिए इसे तरावीह कहते हैं। तरावीह मर्दों और औरतों के लिए सुन्नत हैं। चूंकि कुरान रमजान महीने में नाजिल हुआ है, इसलिए रमजानों में ही तरावीह में पूरा कुरान पढ़ा जाता है।

रमजान उल मुबारक के रुहानी (आध्यात्मिक) फायदे तो बहुत हैं। साथ ही जिस्मानी (शारीरिक) और चिकित्सकीय फायदे भी हैं। इस महीने में रोजा रखने से इंसान को बेशुमार जिस्मानी फायदे होते हैं। रोजा इंसानी जिस्म को कई बीमारियों से सुरक्षित कर देता है। जिसमें मोटापा एक प्रमुख बीमारी है। वैसे ब्लड प्रेशर में रोजा रखने से कमी आ जाती है। हालांकि हमारे देश में लाखों लोग मोटापे की वजह से बीमार रहते हैं चुनाचे मोटे लोगों के लिए रोजा मुफीद है। रोजा रखने से जहां मोटे लोगों के मोटापे में कमी आएगी, वहीं उन्हें कई बीमारियों से भी निजात मिल जाएगी। रमजान के महीने की एक ताक  (विषम) रात में कुरान पाक की आयत का अवतरण शुरू हुआ था। इसके बाद 23 वर्ष की अवधि में आवश्यकतानुसार थोड़ा-थोड़ा करके कुरान  उतरा है। पैगम्बर हजरत मोहम्मद सल्ल. की जिंदगी में रमजान महीनों की अन्य ताक रातों में भी कुरान के आदेशों का अवतरण खुदा ने उन पर किया था। कुरान अवतरण के बारे में इस बात को मुकम्मल करना मुनासिब होगा कि शब-ए-कद्र पर भी रोशनी डाली जाए, क्योंकि इसी रात से कुरान पाक को 'लोहे महफूज’ (आसमान पर स्थित खुदा का बनाया हुआ एक नोटिस बोर्ड) से दुनिया में उतारा जाना शुरू हुआ था।

इसी ताक रात को दुनिया की बेजोड़ इस्लामी आयतों ने उतर कर जमीन पर जर्रा-जर्रा दमका दिया था। कुरान पाक में खुद अल्लाहपाक ने इरशाद फरमाया है कि बेशक हमने कुरान पाक को शबे-कद्र में उतारा और तुमको मालूम भी है शब-ए-कद्र क्या है? शब-ए-कद्र बेहतर है हजार महीनों से, इस रात में फरिश्ते और  अल्लाह का खास फरिश्ता भी आसमान से दुनिया में आते हैं।

रमजान के महीने में जहां रोजा फर्ज किया गया और तरावीह को सुन्नत करार दिया गया साथ ही शब-ए-कद्र की इबादत को हजार महीनों की इबादत के सवाब के बराबर बताया गया है।

वहीं रमजान में 'ऐतकाफ’ की मायने अपने आपको किसी चीज से वाबस्ताकर के रोके रखने के हैं, लेकिन शरीयत में इससे मुराद 'नीयत के साथ मस्जिद में रहने के हैं।‘ रमजान उल्मुबारक के आखिरी अशरे  (आखिरी दस दिन) में मगरिब के बाद से ईद का चांद नजर आने तक ऐतकाफ करना होता है। हजरत इब्ते उमर रदि. से रिवायत है कि हजरत मोहम्मद सल्ल. रमजान मुबारक के आखिरी दस दिनों में हर साल एतकाफ फरमाते थे। यहां तक कि आप अपने रब से जामिले।

अपनी तमाम दूसरी फजीलतों के अलावा इस मुकद्दस महीने को इस्लाम को एक महान इबादत रोजे के लिए खास कर दिया है। जिस तरह दूसरी फर्ज इबादतों नमाज जकात, हज और जिहाद में तामीरे किरदार बहुत से पहलू हैं, उसी तरह रोजा भी ईमानी तरबीयत का एक मुकम्मल कोर्स है। बशर्ते, इसे पूरे शउर के साथ अदा किया जाए।   (विनायक फीचर्स)