दिल से चाहने की सजा - राजेश कुमार झा
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दिल से चाहने की मुझे सजा देते हो,
में रोता हूँ तो मुझे हौसला देते हो ।
तेरे बिछड़ने के गम से दिल घबराता है,
क्यों नही आकर मेरे सपनो की दुनिया बसा देते हो।
बड़ी मुश्किल बड़ी शिद्दत से मिले हो तुम हमे,
क्यों नही आकर मेरा सुना आंगन खिल खिला देते हो।
हम निभायेंगे पूरी वफा से अपनी मोहब्बत सनम.
क्यों नही मेरे अरमानों को सजा देते हो।
दिल से चाहने की मुझे सजा देते हो,
में रोता हूँ तो और मुझे हौसला देते हो।
बड़ी नाचीज सी बड़ी प्यारी नाजुक होती है मोहब्बत,
क्यों नही एक बार मेरे सुने दिल की महफिल में बहार ला देते हो
कहते है मोहब्बत हर किसी को नसीब नही होती,
क्यों नही तुम आकर मुझे संभाल देते हो।
यूँ ही नही होती हर किसी को किसी से महोब्बत,
अपने ख्यालों से क्यों नही मेरे ख्यालों को साकार बना देते हो।
- राजेश कुमार झा,बीना, मध्य प्रदेश