चुनाव प्रचार में पसीना बहाती रानी - महारानी - राकेश अचल

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vivratidarpan.com - अठारहवीं लोकसभा में जाने के लिए चुनाव लड़ रहे मध्यप्रदेश के राजा हों या महाराजा अपनी जीत को लेकर एकदम बेफिक्र नहीं हैं। इसीलिए राजा हों चाहे महाराजा उन्हें जिताने के लिए उनके बीबी-बच्चे तक चुनाव प्रचार में पसीना बहा रहे है।  बुंदेलखंड में इसे फसूकर डालना भी कहते हैं। मध्यप्रदेश की 29 में से दो सीटें गुना और राजगढ़ इन दिनों सुर्ख़ियों में है।  गुना से सिंधिया राजघराने के प्रमुख केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव मैदान में है।  2019  में इसी सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में भाजपा ने उन्हें  करारी शिकस्त दी थी और उनके पास से अजेय होने का तमगा छीन लिया था। 2024 में वे भाजपा के ही प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं और उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में अपनी पत्नी महारानी श्रीमती प्रियदर्शनी राजे और बेटे  महाआर्यमन को भी मैदान में उतार  दिया  है।

सिंधिया परिवार में मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने परिजनों का इस्तेमाल करने की हालाँकि बहुत पुरानी  परम्परा है।  राजमाता विजया राजे सिंधिया के चुनाव में उनके बेटे माधवराव सिंधिया 1971 से पहले भीड़ को आकर्षित करने के लिए युवा महाराज के रूप में उतारे जाते थे। 1984 के चुनाव के बाद खुद माधवराव सिंधिया के चुनाव में उनकी  पत्नी श्रीमती माधवी राजे और बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी चुनाव प्रचार में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया की उम्र कुल १४  साल की थी । इस चुनाव में माधवराव सिंधिया ने भाजपा  के दिग्गज  नेता अटल बिहारी वाजपेयी को पराजित किया था ।

पिछले चुनाव में पराजय  का सामना  कर चुके  ज्योतिरादित्य  सिंधिया हालाँकि  इस बार सत्तारूढ़ भाजपा  के प्रत्याशी हैं किन्तु भाजपा ने निवर्तमान  सांसद केपी यादव का टिकिट  काटकर  उन्हें  प्रत्याशी बनाया है इसलिए  यादवों में विद्रोह की आशंका  है। इस डैमेज को कंट्रोल करने उन्होंने गुना संसदीय क्षेत्र के आदिवासी बहुल इलाकों में अपनी पत्नी प्रियदर्शनी राजे और बेटे महाआर्यमन सिंधिया को मैदान में उतारा है । ये दोनों इलाके में दीवार लेखन से लेकर मतदाताओं से प्रत्यक्ष सम्पर्क करने में दिन -रात  एक  किये  हुए हैं । सिंधिया परिवार के सदस्यों के प्रति इलाके के मतदाताओं  में आकर्षण आज भी बरकरार है। आपको बता दूँ कि सिंधिया पिछले चुनाव में एक लाख बीस हजार वोटों से हारे थे।गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 6 और  पिता माधवराव सिंधिया ने 4 चुनाव जीते थे। खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना को लगातार चार बार जीता था।

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मध्यप्रदेश में दूसरा दिलचस्प चुनाव राजगढ़ में हो रहा है ।  यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह चुनाव लड़ रहे हैं।  वे 31 साल बाद राजगढ़ वापस लौटे है।  दिग्विजय सिंह ने यहां से पहला लोकसभा चुनाव 1984 में लड़ा था और आखिरी 1991 में। बाद में उनके भाई लक्ष्मण सिंह ने यहां से चार चुनाव कांग्रेस के टिकिट पर और एक चुनाव 2004 में भाजपा के टिकिट पर जीता था। 2009 के चुनाव में भी ये सीट कांग्रेस के पास ही थी लेकिन 2014 और 2019  के आम चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से ये सीट छीन ली थी। अब यहां से कांग्रेस के राजा दिग्विजय सिंह का मुकाबला  भाजपा के वर्तमान सांसद  रोडमल नागर  से है।

दिग्विजय सिंह के चुनाव प्रचार में  पुत्र जयवर्धन सिंह और दिग्विजय सिंह की पत्नी श्रीमती अमृता सिंह मैदान में है। अमृता पुरानी पत्रकार रहीं है और उन्होंने दिग्विजय सिंह के साथ नर्मदा परिक्रमा में भी हिस्सा लिया था। ख़ास बात ये है कि भाजपा ने दिग्विजय सिंह को उस  तरह  से अभी नहीं घेरा है जिस  तरह से छिंदवाड़ा  में कमलनाथ को निबटाने  के लिए उनके बेटे नकुलनाथ  को घेरा  था ।

मजे की बात ये है कि भाजपा में सिंधिया और राघौगढ़ महल के लिए शुभचिंतकों की भी कमी कभी नहीं रही। दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह भाजपा में रह चुके हैं। शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर से दिग्विजय के निजी  रिश्ते हैं। इसी तरह गुना में ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए अनेक भाजपाई समर्पित हैं।इन सबके बाद भी भारतीय लोकतंत्र की यही विशेषता है कि यहां जीत के लिए रानी महारानियों को भी जनता की शरण में जाना पड़ रहा है और राजा महाराजाओं को जिताने के लिए भरपूर पसीना भी बहाना पड़ रहा है।(विभूति फीचर्स)