पूर्णिका - श्याम कुंवर भारती

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गम में लोग शराब पीते है मैं तेरे गम में आंसू पी रहा हूं।

दिल लगा के भुला बैठे कभी सोचा नहीं कैसे जी रहा हूं।

आओ थाम लो तुम मेरी जिंदगी सैलाब आंसू बहा ले जाएगा।

तेरे बिना मैं टूटे दिल को देखो मैं कैसे तन्हा ही सी रहा हूं।

हर तरफ छाई है मौसम-ए-बहार मगर दिल मेरा बीरान है।

मन हुआ मेरा मरुस्थल बिन तेरे प्यार के नही खिल रहा हूं।

आ जाओ की लौट आए बहार मेरी सुनी जिंदगी में।

रोज रातों को तेरे सितम की बर्बादियो से मै मिल रहा हूं।

दर्द-ए-दिल कैसे सहता हूं आकर देखो मेरे जख्मी दिल तुम।

तू ही मेरी जिंदगी तुझ पर कर दिल निसार मर न जी रहा  हूं।

- श्याम कुंवर भारती, बोकारो झारखंड