बड़े बने ये साहित्यकार - प्रियंका 'सौरभ'

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बंटते बंदर बांट पुरस्कार।

दौड़ रहे है पीछे-पीछे,

बड़े बने ये साहित्यकार॥

पुरस्कारों की दौड़ में खोकर,

भूल बैठे हैं सच्चा सृजन।

लिख के वरिष्ठ रचनाकार,

करते है वह झूठा अर्जन॥

मस्तक तिलक लग जाए,

और चाहे गले में हार।

बड़े बने ये साहित्यकार॥

अब चला हाशिये पर गया,

सच्चा कर्मठ रचनाकार।

राजनीति के रंग जमाते,

साहित्य के ये ठेकेदार॥

बेचे कौड़ी में कलम,

हो कैसे साहित्यिक उद्धार।

बड़े बने ये साहित्यकार॥

देव-पूजन के संग ज़रूरी,

मन की निश्छल आराधना॥

बिन दर्द का स्वाद चखे,

न होती पल्लवित साधना॥

बिना साधना नहीं साहित्य,

झूठा है वह रचनाकार।

बड़े बने ये साहित्यकार॥

—प्रियंका 'सौरभ'  333, परी वाटिका, कौशल्या भवन,

बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा–127045