ज़ख्म कभी भरता नहीं - प्रियदर्शिनी पुष्पा
Nov 24, 2024, 22:48 IST
| ज़ख्म कभी भरता नहीं, कहे चीखकर वक्त।
सूख के सारे मूल भी , कर लेता है ज़ब्त।।
दूना तीना रूप ले , बढ़ता अंतर टीस।
जैसे विषधर जीव ने , काट लिया चढ़ शीश।।
लगे उगा उर द्वार पर, नागफणी के शूल।
ज़ख्मी होकर धमनियां, टूट रहे सामूल।
रक्त स्वेद हिम सा लगे, जमने लगे कराह।
अश्रु बिंदु करते रहे, पीड़ा निरत प्रवाह।।
खोते खोते खो गया, खोने का अभिप्राय।
खोकर विषयांतर हुआ, खोने का अध्याय।।
- प्रियदर्शिनी पुष्पा पुष्प , जमशेदपुर