प्रेम - अनिरुद्ध कुमार

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प्रेममय संसार सारा, प्रेम हीं सुखसार है।

प्रेम बिन जीना अधूरा, प्रेम कीजयकार है।।

प्रेम धुन हीं जिंदगी का, प्रेम से होती खुशी।

प्रेम बंधन हीं धरा का, प्रेम से जीवन सुखी।।

प्रेम का गुनगान जग में, प्रेम हीं आधार है।

प्रेम वाणी में बिराजे, प्रेम जीवन धार है।।

प्रेम माया प्रेम छाया, प्रेम पर निर्भर जहाँ।

प्रेम से ये चाँद तारें, प्रेम धन जग में लुटा।।

प्रेम से कल्याण जग का, प्रेम सुखदाई लगे।

प्रेम के दो बोल मोहे, प्रेम फलदाई लगे।।

प्रेम को माने जमाना, प्रेम में झंकार है।

प्रेम के कारन जमीं पे, दो दिलों में प्यार है।।

प्रेम से हीं जिंदगी है, प्रेम में ही जान है।

प्रेम में ही बंदगी है, प्रेम में हीं मान है।।

प्रेम में हीं रौशनी है,प्रेम में हीं ज्ञान है।

प्रेम ने जीवन सम्हाला, प्रेम में सुखशान है।।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड